kavita-akavita
ek afsaana sunaa sunaa saa
Wednesday, December 16, 2009
एक कविता ऐसी भी
शुन्य की तलाश में
अंक जोड़ता रहा हूँ मैं
जैसे तकते हुए आसमान
मैं धरती नापता रहा।
उफ़ यह नादानी।
1 comment:
मनोज कुमार
December 16, 2009 at 7:49 PM
वाह..वाह।
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वाह..वाह।
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