kavita-akavita
ek afsaana sunaa sunaa saa
Friday, December 11, 2009
सिल दो मेरे होंठ
तुम्हे शिकायत है कि मैं बोलता बहुत हूँ
मुझे ज़माने की चुप्पी से परेशानी है
तुम्हे चाहिए एक पुरा इलाका
मेरे लिए तो एक गज भी बहुत है
चलो बाँट लेते हैं अपनी तमन्नाएँ
कुछ तुम ले जाओ अपने दामन में समेटे
कुछ दफना देता हूँ कि कोई पेड़ उग आए। ।
1 comment:
परमजीत सिहँ बाली
December 11, 2009 at 9:57 PM
वाह! क्या बात है।बढिया!!
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वाह! क्या बात है।बढिया!!
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