Thursday, October 7, 2010

एक दिन ऐसा भी हुआ था

टूटे आसमान का एक टुकड़ा लिए हाथ में
एक प्रयास टुकड़े को थामने का
हो गया पूरा शरीर नीला
पीला हो रहा चेहरा
मगर क्या हो गया आसमान के नीलेपन को
एक टुकड़ा ही तो लिया है
क्यों पूरा रंग चला गया
लगा सोचने रख कर सर हाथों में।
इतने में बदल गया रंग
मेरे चेहरे का
उड़ता रहा धुल जैसा गुबार
चुभता रहा आँखों में देर तक
लिए रुमाल हाथों में
अपनी फूंक से गरम कर, सेंकता रहा
तब उठा कर नज़र देखा तो
उफ़ यह क्या!
आसमान का रंग तो लाल हो गया था।

1 comment:

  1. कल्पना की अच्छी उड़ान भरी है। बढ़िया!!

    ReplyDelete