Sunday, October 3, 2010

देखो यही सच है

मेरे क़दमों को देखते चलो
उस राह का आगाज़ देती है
जिस पर और भी चले थे
मगर उन्हें अब याद नहीं
अगर इस राह का कोई होता अपना वजूद
तो समझ लो
वह भी
मेरी ही तरह मुझ से कतरा कर चलता और
मैं
अपनी याद का डब्बा लिए
चल दिया उस दिशा में
जहाँ दिखा था धुआं उस दिन।

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