क्यूँ सब हैं इतने खामोश
किस बात पर हैं सब हैरान
जब सोचने को नहीं हो कुछ बाकी
तो क्या देखेंगी आँखें।
अब जब कि में थक सा गया हूँ
मुझसे लम्बी दौड़ क़ी उम्मीद कैसी
कैसे करते हैं मेरी पहचान से गुफ्तगू
और में हूँ कि अकेला
अपने आप में सिमटा
बिलकुल खामोश
सुनता रहा
आने गिर्द फैली
सनसनाती हुई ख़ामोशी
जैसे कोई खेलाता है
गोद में एक छोटा सा बच्चा।
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