कल शाम जब ढल रही थी
उस दिन जब सूरज निकल रहा था
एक दिन और जब बारिश की फुहारों ने गीले कर दिए थे मेरे सपने
और फिर वह दिन जब इन्द्रधनुष की कमान पर चढ़ कर
विलुप्त हुए तुम मेरी दृष्टि ओर दिल से
किसने कहा था
समाप्त हुआ एक युग
किसने कहा था प्रेम कि हुई मौत।
तब से आज तक मैं तुम्हारे छुअन को आत्मसात किये हूँ
हर पल
हर डगर पर
तुम्हारा साथ सजाये नयनों में
किसने कहा था वह एहसास के धरातल पर का प्यार
मैं तो आज भी छू पा रहा हूँ
उँगलियों के पोरों से टपकते लाल रक्त की मानिंद।
आप और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ...nice
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