कहिए भी क्या
चुप रहिए भी क्यों
हाथ हैं तो क्या
लोगों से मिलिए भी क्या
एक आदमी है गुमनाम सा
एक चाँद है आसमान पर
एक मैं हूँ
एक तुम हो
और है एक अनसुनी कहानी
एक बेजान सी मूरत
एक चुलबुली आँख
शायद तुम हो
या तुम्हारा अक्स
हवा में घुल गया है
चुप रहिए भी क्यों
हाथ हैं तो क्या
लोगों से मिलिए भी क्या
एक आदमी है गुमनाम सा
एक चाँद है आसमान पर
एक मैं हूँ
एक तुम हो
और है एक अनसुनी कहानी
एक बेजान सी मूरत
एक चुलबुली आँख
शायद तुम हो
या तुम्हारा अक्स
हवा में घुल गया है