Saturday, January 14, 2017

अक्स

कहिए भी क्या
चुप रहिए भी क्यों
हाथ हैं तो क्या
लोगों से मिलिए भी क्या
एक आदमी है गुमनाम सा
एक चाँद है आसमान पर
एक मैं हूँ
एक तुम हो
और है एक अनसुनी कहानी
एक बेजान सी मूरत
एक चुलबुली आँख
शायद तुम हो
या तुम्हारा अक्स
हवा में घुल गया है

Monday, May 11, 2015

हद क्यों है....
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इस पार या उस पार
इस जगह या उस जगह
क्या है क्यों  है
मेरा होना तुम्हारा ना होना
एक सदा सा झूठ
एक भूली हुई याद
एक सहमी हुई सी ज़िन्दगी
एक तुम
एक मैं
और एक लोगों का हम
उफ़ यह दुनिया!

Sunday, March 30, 2014



एक ख्वाब
एक एहसास
एक रोज़
आते रहे
दबे पाँव
जैसे तुम्हारे ख्याल
हौले से
आते हैं
दुलराने को
समझाने को
मनाने को आया
एक नया
शख्स अंजाना।
उड़ता रहा
आँखों में पड़ती धुल
एक समय से
आती रही
खुश्बू किसी सोच की
सोच जो नादान थी
सोच जो बेरंग थी
तुमने कहा
मैंने सुना
उसकी चीख
मेरी पुकार
सुनो दास्ताँ
सुनाता एक फ़साना
जरा दिल थाम कर बैठो।

Sunday, January 12, 2014

कहो तो रेत से क्या कहें

रेत पर पसरा हुआ तुम्हारा  ही अक्स था 
जो  छुआ मैंने तो मेरी पहचान बन गयी।  

आज कुछ हुआ तो ज़रूर है क्यूंकि 
किया तुमको याद और हवा ख्याल बन गयी।  

जज़बे में था इस शहर के तौर तरीको का एहसास 
 मुझे से मिली तो हवा भी  बदहवास बन गयी। 

सोचो ज़रा क्या हुआ है हमारी इल्म औ तालीम को 
कि एक खूबसुरत सी लड़की बला  बन गयी। 

या खुदा  रहम कर अपने बन्दे पर एक बार 
जो मेरा थी अब जाहिर-ए आम बन गयी।  

Thursday, January 2, 2014

ज़िन्दगी भी क्या है

ज़िन्दगी तुम्हे छुआ है मैंने 
मेरी चाहतों का काफिला है यह 
न कहो तो भी मैं मान लूँगा कि 

मेरी मेरे आंसू का सील सिलसिला है यह. 

जिन गलियों से गुजरे वही बिसर गयी यादों से 
जैसे पसर गयी सुबह कि धुप शाम तक 
थाम कर दामन जो चाहा था चलना 
भूल गयी राहें, खो गयी मंज़िलें। 

आओ कि अब मौसम भी हसीं है 
आओ कि अब ख्यालों में रवानी बाकी है 
मेरा वजूद मुझसे पूछता है हौले से 
अच्छा बताना तुम्हारा महबूब-ए सफ़र 
अब भी महबूब -ए ख्याल है क्या ! 

वक़्त के गुजरने से सफ़र का क्या ताल्लुक 
मेरे जहन में अब भी वही खुश्बू बाकी है 
एक सफ़र है गलियों और मोड़ों से भरी 
कुछ तुमसे हरी, कुछ मुझ से भरी।

Saturday, December 14, 2013

सब्ज़ बाग़

ऐ दोस्त मुनासिब नहीं है इस सफ़र से मुकर जाना 
इस सफ़र की  किस्मत में है हमारा गुज़र जाना। 

जो बीते हैं दिन तुम्हारे साथ वह याद आयेंगे 
ऐ दोस्त मुनासिब नहीं था यूँ वादे से मुकर जाना।

इस साल अमराई में कौन  गायेगा कोयल की  आवाज़ में 
अच्छा नहीं है लोगों कि आदतों से बिफर जाना।

चलो अच्छा हुआ कि तुम ही  बदल गए वक़्त के साथ 
वरना क्या ज़वाब देता मैं तुम्हारा इस तरह वादों से पलट जाना।

बहुत इंतज़ार किया है अब इंतकाल-ए सफ़र है 
आखिरी वक़्त में याद आएगा तुम्हारा ख्वाबों से  चले जाना।   

Tuesday, October 22, 2013

मकान खाली है!

खाली खाली  से  घर में खाली  सा  मकान है 
मेरा वजूद मुझसे हज़ार सवाल करता है 
नल में पानी का बूँद बूँद टपकना 
खोखला  करती है मेरे सोच की सारी  प्रक्रिया 
घर के हर कोने में अँधेरे का राज 
तुम्हारे जज़्बात अब दीखते नहीं 
और अब इतने पास हो नहीं की खुशबू ही आ जाये।
एक अनगढ़ कहानी, उसके उलझे पात्र 
टेढ़े मेढे  रास्ते और गिनती की साँसें 
दूर तक है नहीं कोई थामने को हाथ 
खाली से घर में 
हर ओर बिखरा हुआ वक़्त 
और उस अनछुए पल की रौशनी में 
तुम्हारे होने न होने का नमकीन सा एहसास
कभी जिन लबों पर बिखरी थी तबस्सुम 
और मेरा होना लिखा था 
अब, सब मेरा है नहीं, कुछ भी नहीं 
लिखा तो है आज भी 
यह मकान खाली है.  

Friday, October 18, 2013

है तूफ़ान तो मनाईये मौज

तूफ़ान पर मची क्यों हाय तौबा 
आंधी ही तो है, गुज़र जाएगी 
यह गरीब लोग भी बहुत चिल्लाते हैं 
अपनी तकलीफ बहुत बार सुनाते हैं 
मौसम का महकमा भी मज़े ले रहा है 
एक छोटा सा हादसा है, बस हौव्वा बना दिया है 
देखो हमारे टीवी वालों को 
कैसे रोटी चल रही है उनकी 
हम हैं पहली खबर के साथ यही ब्रेकिंग न्यूज़ बन गया है 
बाहरी मुल्कों में तो मामला गरम है 
गरीब भारत में तूफ़ान आ रहा है
यह अच्छी खबर है जो ग़मगीन हो कर सुना रहे हैं
चल रहा है खबर का रोज़गार
टीवी के लोग कम रहे हैं इश्तहार से पैसा
मगर गरीब लोग हैं की चुप ही नहीं होते
फेस बुक पर भगवन -खुदा को दुहाई दे रहे हैं
अब पैसा कमाना आया नहीं तो यू ही कोसेंगे तूफ़ान को
वरना टीवी पर दुहाई दो और मांगो तगड़ा मुआवजा
सीखो पूंजीपतियों से अपने बाप की मैय्यत से पैसे कमाना
उनकी मैय्यत दफ़नाने का भी लाइव टेलीकास्ट करवाओ और पैसे कमाओ
तूफ़ान से डरो नहीं, उसको भुनाओ
जय हो टीवी पूंजीवाद !

Tuesday, July 30, 2013

अब पूछो तो कहूं

एक सूखा पेड़ 
टहनियों पर बैठी कई चिड़िया 
पत्तों का क्या गम करे 
नए की हुई है तैय्यारी 
डालों पर बैठी चिड़िया सब इसी इंतज़ार में 
आएगी कभी हरियाली 
आएगी कभी तो रंग भरी 
अभी तो हवा भी है ज़र्द 
फिर कैसे हो लबों पर तबस्सुम 
पानी का अक्स 
जैसे आंधी में उड़ते सूखे पत्ते 
जैसे खुशबू  से पटी  सांसें 
जैसे ख़ामोशी में लिपटी एक उम्र की कहानी 
जैसे उफनती नदी में डोलता पत्ता 

उडती रही सारी  चिड़िया 
एक एक कर 
पत्तों का वजूद हिलता रहा 
सूखा पेड़ सोचता रहा 
अब जब आयेगी बहार 
तो पूछेंगे 
जाते कहाँ हो हमे छोड़ कर इन महीनो में 
कैसे रोते हैं हम इन महीनो में 
पूछो तो !


Tuesday, May 21, 2013

सफरनामा

यह एक कहानी है 
उम्र के लहजे में 
धीरे से कही हुई 
मेरे अरमानो के सिरहाने में 
जैसे चुपके से कोई 
रख गया हो 
ठन्डे बूंदों में 
दबा दबा सा 
वही पुराना सा एहसास 
सोचता रहा मैं 
यह कौन सा सफ़र है?