Tuesday, October 22, 2013

मकान खाली है!

खाली खाली  से  घर में खाली  सा  मकान है 
मेरा वजूद मुझसे हज़ार सवाल करता है 
नल में पानी का बूँद बूँद टपकना 
खोखला  करती है मेरे सोच की सारी  प्रक्रिया 
घर के हर कोने में अँधेरे का राज 
तुम्हारे जज़्बात अब दीखते नहीं 
और अब इतने पास हो नहीं की खुशबू ही आ जाये।
एक अनगढ़ कहानी, उसके उलझे पात्र 
टेढ़े मेढे  रास्ते और गिनती की साँसें 
दूर तक है नहीं कोई थामने को हाथ 
खाली से घर में 
हर ओर बिखरा हुआ वक़्त 
और उस अनछुए पल की रौशनी में 
तुम्हारे होने न होने का नमकीन सा एहसास
कभी जिन लबों पर बिखरी थी तबस्सुम 
और मेरा होना लिखा था 
अब, सब मेरा है नहीं, कुछ भी नहीं 
लिखा तो है आज भी 
यह मकान खाली है.  

No comments:

Post a Comment