kavita-akavita
ek afsaana sunaa sunaa saa
Sunday, August 28, 2011
सोचिये ...
सोचिये तो ज़रा
कोई क्यूँ मेरी मुस्कराहट का दाम लगाता है
कोई क्यूँ मेरे होने के मानी निकालता है
मैं तो सिर्फ जीने की कोशिश कर रहा हूँ
और मेरा मन?
वह तो कुछ कहता ही नहीं.
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