ज़िन्दगी जी, तो किस कदर
उम्र बसर की, तो किस तरह
कहने को तो हुए उम्रदार हम भी
मगर सफ़ेद हुए बालों से तजुर्बों का क्या ताल्लुक?
मजहबी बातें हैं, क़ाज़ी जी समझ लेंगे
हम पढ़ पढ़ कर किताबें और भी नादान हुए
तुम्हारी बात कुछ और है
तुम तो ले कर डिग्री आलिम बने बैठे हो।
सुनो समझदारों, अब वक़्त आ गया है
फलसफों को भूलने का
मजहब को घर और दिलों में में रखने का
और निकल कर कच्ची धुप में
बारिश की तलाश में हाथ पसारे घूमने का।
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