अजीब है यह अंतहीन सफर
मेरे हाथ से निकल कर मेरे आंखों में समां जाती है सड़के
मेरे बालों की नमी से
कहते है की
उनके ख्यालों की फसल उगती है
मेरे आंसू से सिचाई होती है
मेरे उंगलीयोंके पोरों से निकल कर मेरा अस्तित्व
किसी गैर की बन जाती है संपत्ति।
क्या मैं इस चक्रव्यूह को समझ सकता हूँ?
नहीं मैं इस से बाहर निकलना नहीं चाहता
न ही मैं इसे तोड़ना चाहता हूँ
मैं तो बस इसे समझ कर अपना सुरक्षा कवच बनाना चाहता हूँ
हैरान ना हों
मैं अधुमिक आदमी हूँ
जो हर मौके से फायदा निकालना जानता है
तब अभिमन्यु था की मर गया
आज मैं इस चक्रव्यूह को ही अपना ताकत बनाना चाहता हूँ।
मैं इस अंत हीन सफर को भी अपने हित में मोड़ना चाहता हूँ
क्या पता यह सफर ही मेरा व्यवसाय बन जाए!
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