kavita-akavita
ek afsaana sunaa sunaa saa
Wednesday, September 7, 2011
मैं
तुम
और
नीला गगन
एक उडती चिड़िया
बचती चीलों से
सोची
कितनी भग्यशाली हूँ की चील मुझे खा नहीं जाता
तभी झपट्टा मरा चील ने
मगर बल बाल- बाल बच गयी चिड़िया
एक ढली ही सी शाम को
बहे है बयार
ठंडी , सुस्ताई सी
पूछा मैंने अपने अपने आप से
तो मेरे स्वयं बोला
बोलो
क्या है
क्यूँ मैं अजीब सी दास्ताँ से गुजर रहा हूँ
क्यूँ मेरे साथ ऐसा होता है
छत की मुंडेर पर बैठी एक चिड़िया
थोड़ी चहकी
थोड़ी फुदकी
और उड़ गई
फुर्र्र्रर्र्र्रर्र्र
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