Saturday, January 14, 2017

अक्स

कहिए भी क्या
चुप रहिए भी क्यों
हाथ हैं तो क्या
लोगों से मिलिए भी क्या
एक आदमी है गुमनाम सा
एक चाँद है आसमान पर
एक मैं हूँ
एक तुम हो
और है एक अनसुनी कहानी
एक बेजान सी मूरत
एक चुलबुली आँख
शायद तुम हो
या तुम्हारा अक्स
हवा में घुल गया है