Thursday, April 23, 2009

संभावनाओं की आहट!

कौन है वहां
मेरे अस्तित्व की परछाईयों में
मेरे अतीत को तलाशता
जैसे ले आया हो कोर्ट का वॉरंट
ले रहा हो जैसे करती है तलाशी पुलिस।
मेरे जहन में आया है
पूरब की ठंडी बयार सी
मेरा वर्त्तमान
कहाँ है मेरा अतीत
मुझे जहाँ तक याद है
वह पिछली बारिश में गीला हो गया था
फिर पोंछ कर हाथो से मैं
उसे लपेट कर पुराने अख़बार में
भूल हया था मैं इतने बरसों से।
तो क्यों मैं इस कदर परेशां हूँ?
क्यूँ मुझे कुछ होने का आभास सा हो रहा है?
क्यूँ लग रहा है जैसे एक अभिसारिका सी
उस कोने में कुछ खोज रही है? क्या हो सकती है वह चीज़?
मेरी खोई हुई कोई कहानी
या फिर तुम सी अप्रतिम कोई कविता
क्या जानू मैं ?

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